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विकास की ख्वाहिश में ,विनाश की ओर अग्रसर विश्व !

aditya
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हमारी वसुंधरा यानि हमें जीवन प्रदान करने वाली विशाल व अद्भुत पृथ्वी ,परमात्मा की उत्कृष्टतम रचनाओं का सम्मिलित रूप है .यहाँ मनमोहक रंगों व रूपों को समेंटे प्राणियों की हलचल ,नदियों की कर्णप्रिय खलखल एवं जीवन को रोमांचित कर देने वाली हरेक चीजें पर्याप्त मात्रा में व्याप्त है. पूरी मानवजाति के साथ- साथ समग्र प्राणी वर्ग सदियों से इसकी दीवानगी में खोया अपना जीवनयापन करता आया हैं .पृथ्वी के इस गोद में पीढियां दर पीढियां जन्म लेकर इसका दोहन करते हुए अंततः इसी में समाती गयीं और यह सिलसिला सदियों से अनवरत जारी है .
प्राचीन काल में लोग प्रकृति के मध्य रहकर इनकी विविधताओं व व्यापकताओं से प्रफुल्लित होकर प्रकृति से सामंजस्य बिठाते हुए इनकी संसाधनों का उपयोग किया करते थे ,पर जैसे जैसे लोगों व उनकी मानसिकताएं में बदलाव होता गया , वे अपने सहूलियत के लिए इस धरा की संसाधनों को निचोड़ते गए जिसके परिणामस्वरूप प्रकृति बदहाल होती गयी .विकास की अंधी दौड़ में मानव संभवत पूरी तरह से प्रकृति के प्रति निर्दय हो चुके हैं .उन्हें जीवनदायिनी धरा के प्रति अपनी दायित्वों व जिम्मेदारियों का भान तक नहीं है .वर्तमान पीढ़ी को जल्द से जल्द प्रकृति व धरा के प्रति सजग होना होगा ,अन्यथा प्रकृति की विनाशलीला हम सभी को लील सकती हैं.

आदित्य शर्मा, दुमका
adityasharma.dmk@gmail.com

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