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अनुशासन सर्वोपरि

aditya
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समय के प्रवाह के साथ हम कितने बदल से गये हैं ,हमारी इस जहाँ में ,अब रिश्ते तो शेष हैं ,पर भावनाओं का गला घूंट चूका है .लोगों के मध्य अब स्वार्थी मानसिकता इस कदर हावी हो चुकी ही कि वे अपने मकसदों व मंसूबों में कामयाबी प्राप्त करने की चाहत में मानवीय मूल्यों को दरकिनार कर सरेआम आमानवीय कृत्य करने से भी नहीं झिझकता है .आये दिन हम ऐसे ख़बरों से मुखातिब होते रहते है ,जिसमे मानव अपने स्वार्थ के लिए किसी रिश्तेदार ,नजदीकी यहाँ तक की अपने भाई -बहन व माता – पिता से भी दुराचरण कर बैठता है .आखिर ऐसी बदलाव की वजह क्या है? ,जिसमे व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए रिश्ते -नाते ,अनुशासन , व लाज लिहाज तक की आहुति दे देता है .कोई व्यक्ति चाहे कितनी भी दौलत क्यों न कमा ले ,कितनी भी ख्यातिवान क्यों न बन जाये , पर अनुशासन के बिना उनकी निजी ज़िन्दगी ज्यादा दिनों तक रसमयी नहीं रह सकती है .अनुशासन जीवन को रंगों से परिपूर्ण दुनिया की ओर ले जाता है .वर्तमान पीढ़ी में अनुशासनहीनता की मुख्य वजह कहीं न कहीं उनके लालन पालन में अभिवावकों द्वारा बरती गयी लापरवाही है .अपने बच्चों की इच्छाओं की पूर्ति करते करते वे अनायास ही उन्हें संस्कार व अनुशासन का उपयोगी पाठ पढ़ाने में विफल हो जाते है ,जिसका खमियाजा उन्हें और समाज को बाद में भुगतना पड़ता है .

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