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साल भर के अंतराल के पश्चात् वो दिन आ ही गया ,जब लोग अपने समूचे समाज के साथ इकठ्ठे होकर बुराई पर अच्छाई की विजय के मिथक को सरोकार करते हुए पाप व नफरत की प्रतीक “होलिका ” के पुतले का दहन करते हैं और ठीक होलिका दहन की भांति अपने समाज से अन्याय , भ्रष्टाचार व तमाम कुरीतियाँ व बुरे अवधारनाओं को जला देने का प्रण लेते हैं .इस दिन से लोगो के जीवन में काफी कुछ बदल जाता है .होलिका के पुतले को धूं – धुंकर जलता देख कई लोगों को ये आभास हो जाता है कि अहंकारी मानसिकता से ग्रसित व्यक्ति का दर्दनाक अंत निश्चित है ,पर बावजूद इसके ,बस कुछ को छोड़कर ,न तो किसी की मानसिकता में कोई खास बदलाव आता है और न ही उनके आचार – व्यवहार में .साल दर साल ऐसी अनेक उत्सवों को वे मनाते तो हैं पर उनको मनाने के पीछे के मुख्य उद्देश्य व सन्देश से पूरी तरह अनभिज्ञ रह जाते हैं. आखिर इस भांति से इन त्योहारों में सम्मिलित होने से क्या फायदा जिससे वे मानवता को राह देती संदेशों को ग्रहण ना कर सके और बस इसे आनंद और उल्लास तक ही सिमित कर दे .हमें अबकी बार होलिका दहन में लोगों के अवचेतन मन में बसे अहंकार को मिटाना ही होगा .यही इस बहुमूल्य व ऐतेहासिक दिवस की सार्थकता होगी .
आदित्य शर्मा ,दुमका
adityasharma.dmk@gmail.com
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