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क्रिकेट, मिडिया और राष्ट्रवाद

aditya
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हमारे देश भारत में क्रिकेट की खुमारी मोटे तौर पर हरेक शख्स में देखी जाती है. यहाँ क्रिकेट को धर्म की तरह माना जाता है और अच्छे खिलाडियों को भगवान तक का दर्जा देकर उन्हें पूजा जाता है .वैसे तो वर्तमान दौर में ,विश्व के कई मुल्कों में इस खेल को तरहीज दी जाती है ,पर जिस कदर भारत व कुछ एशियाई देशों में इसका क्रेज है ,वह विरले ही देखने को मिलता है .इन देशों में क्रिकेट के प्रति लोगों में एक अलग ही पागलपन छायी होती है. यही पागलपन इस खेल को खेल तक न रहकर एक जंग की भांति रूप प्रदान कर देती हैं .खेल का उदेश्य होता है ,लोगों का मनोरंजन करना ,व उन्हें पास लाना ,पर देखा जाये तो अब निहायत ही इसका उद्देश्य बदल चूका है ,लोग अब इसे एक दुसरे को हराकर उसे नीचा दिखाने का माध्यम मानने लगे हैं. इतिहास में ऐसे कई किस्से धरे पड़े हैं, जब लोगों की इस खेल के प्रति जूनून व पागलपन ने अपनी सारी हदें लांघकर इस खेल को शर्मसार कर दिया हो . बात शुरू करते है ,उन ताज़ा वाक्यों से जो अब भी हम सबके ज़ेहन में हरे है, याद कीजिये, पिछले साल का भारत का वो बांग्लादेश दौरा ,जब भारतीय टीम के सीरीज हार जाने के बाद बंगलादेशी प्रशंसकों ने भारतीय खिलाडियों के तस्वीरों से फोटोशोप के ज़रिये छेड़छानी करते हुए इन खिलाडियों के सिर के आधे बाल मुंडवाकर उनके फोटो को सोशल मिडिया पर वाइरल कर दिया था . क्रिकेट के लिए काफी शर्मनाक था ,वह वाकया .हमारे देश भारत में भी तो ,दर्शकों व प्रशंसकों ने कई दफ़ा भारतीय टीम के ख़राब प्रदर्शन करने पर अशोभनीय प्रदर्शन किये हैं .पाकिस्तान जैसे देशों में भी टीम के हार जाने पर प्रशंसकों द्वारा खिलाडियों का अजीबोगरीब तरीके से विरोध किया जाता है ,कहीं लोग अपने टीवी को फोड़ देते है तो कहीं खिलाडियों को टीम से बाहर कर देने की पुरजोर मांग तूल पकड़ लेती है ,क्या खेल के लिए यह उचित है …? खेल तो बस मनोरंजन व शांति का जरिया मात्र होता है, फिर क्यों लोग इससे भावनात्मक व राष्ट्रवादी तरीके से जुड़कर इसके रस को कम कर देते हैं ? खेल को खेल की भावना से देखे जाने की जरूरत है .

आदित्य शर्मा ,दुमका (झारखण्ड)
adityasharma.dmk@gmail.com

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