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किसान आत्महत्या और बदहाली का संकट
पिछले दो वर्षों से रूठे मौसम की मार झेल रहे भारतीय किसान अपना धैर्य खोने को विवश होते जा रहे हैं. भयानक सुखा व भीषण जल-संकट किसानों की जिंदगी में यमराज का रूप धारण कर उन्हें इस जहां से दूर ले जाने को उतारू दिख रहे हैं. अब तक तो यमराज रूपी यह त्रासदी कई किसानों को काल के गाल में समाहित कर चुकी है. इस वर्ष तो पारे ने भयंकर रूप अख्तियार कर रखा है. देश के १३ राज्यों के लगभग २०० जिलों के ५० करोड़ से ज्यादा की आबादी पानी की बूंदों के लिए तरसते दिख रहे हैं. महाराष्ट्र, दिल्ली समेत देश के कई प्रमुख राज्यों के लोग पानी के लिए त्राहि त्राहि कर रहे हैं. एक आंकड़े के मुताबिक इस वर्ष देश के ११६ किसान आत्महत्या कर चुके हैं, और जिस कदर मौसम का वार बदस्तूर जारी है, उससे हमें आगे और भी भयावह आंकड़े देखने को मिल सकते हैं. भारतीय मौसम विभाग द्वारा की गयी अच्छे मानसून की भविष्यवाणी से अब करोड़ो भारतीयों की निगाहें आसमान पर टिक गयी है.
इन दिनों जिस त्रासदी से लोग दो चार हो रहे हैं, वो समूचे भारत के लिए चिंता का विषय है. सत्ता और प्रशासन को इसके प्रति गंभीर रुख अख्तियार करने की दरकार है. मौसम पर तो हमारा वश नहीं है, पर जिन चीजों पर हमारा वश है उनके प्रति हम काफी बेपरवाह रहते हैं. नतीजतन, प्रकृति भी हमें हमारी बेपरवाही की सजा विकराल प्राकृतिक आपदाओं के रूप में देती हैं. क्या हम इतने अक्षम हैं? कि जल को संरक्षित नहीं कर सकते हैं. क्या हम मौसम की मार से पहले खुद को तैयार कर पाने में सक्षम नहीं हैं, जवाब बिलकुल सक्षम हैं, पर हम नींद से तब जागते हैं, जब विनाश का मंज़र बेहद खतरनाक हो जाता है. अभी महाराष्ट्र समेत कई राज्य भीषण जल-संकट के चपेट में है, और उनसे निपटने की तमाम कोशिशें की जा रही है, पर अफ़सोस काफी देर पश्चात्!. यदि पहले से सरकारों ने पूर्वानुमानों का सहारा लेकर अपने-अपने राज्यों में बेहतर प्रबंधन किये होते तो यह त्रासदी भी हमारे हौसले व इच्छाशक्ति को सलामी देती गुजर जाती.
भारत की वर्तमान सरकार अक्सर, 2 वर्षों के भीतर हासिल की गयी, उपलब्धियों को गिनाती रहती है, पर उन्हें इस बात का भान नहीं है कि हमारे देश में किसानों की आत्महत्याओं के ग्राफ़ में लगातार हो रही बढ़ोतरी उनके सारे किये कराये पर पानी फेर सकती है. ज़रूरत उन वजहों को तलाश कर ख़त्म करने की है, जिन वजहों से किसान अपने जीवन से नाता तोड़ रहे हैं, साथ ही भारत सरकार को किसानों की समस्याओं को समझना होगा और उन पहलुओं पर भी विचार करना होगा, जिससे इस कथित कृषि प्रधान देश भारत में किसानों की स्थिति में सुधार आ सकता है. ऐसा नहीं है कि किसानों के बुरे हालात केवल उन्हीं को प्रभावित करते हैं, किसानों की कमाई देश की अर्थव्यवस्था से जुडी हुई है, परिणामस्वरूप किसानों की बदहाली से देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट आती है. वैसे तो आधुनिकरण के ज़माने में अब भी भारत विकास की ओर अग्रसर है, पर अब भी देश की आधी आबादी अपने आजीविका के लिए पूर्णतः कृषि पर ही निर्भर है, ऐसे में विकास के पैमाने में किसानों को आगे रखना समय की मांग है. किसान व कृषि संकट से निजात पाने के लिए नए दृष्टिकोण की ज़रूरत है.
आदित्य शर्मा
adityasharma.dmk@gmail.com
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