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चाहत व इबादत …

aditya
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ऐ खुदा, इतनी हिमाकत तो दे मुझे
कि मैं खुद से इन्साफ कर सकूँ
थोड़ी ही सही पर इतनी मोहलत तो दे दे
कि अपनी रौशनी से इस कायनात को रौशन कर सकूँ

फैले घनघोर ग़मों के बादलों को
राहत भरी बारिशों में तब्दील कर दूँ
कुछ पल मेरे हसीं हो, कुछ मैं लोगों की कर पाऊं
बस इतनी चाहत है, बस इतनी ही इबादत है तुझसे …

डगर पर चलते चलते अगर थोडा थक जाऊं
और किसी के साथ की ज़रूरत पड़े, तो निगाहें न फेरना,
बस अपनी मौजूदगी का इशारा दे देना
हम खुद ब खुद ही संभल जायेंगें

वक़्त की जंजीरों में बंधे मुझे
कुछ लम्हे चाहिए मुस्कुराने को
कुछ हाँथ चाहिए साथ चलने को
भले ही न मिले शान-ओं-शौकत ज़िन्दगी में
पर इस हद तक तो लायक बना दे इस मक्बिल को
कि जब ज़रूरत पड़े, सच्चे व होनहारों की
मैं पंक्ति में सबसे आगे खड़ा रहा हूँ ……

adityasharma.dmk@gmail.com

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