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अर्धचाशनी में लिपटी हकीकत और राष्ट्रवाद

aditya
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किसी भी राष्ट्र के उन्नयन व वैश्विक प्रभाव के लिए उनके नागरिकों में राष्ट्रप्रेम व देश भक्ति की भावना का होना
अत्यंत ज़रूरी होता है. हमारा देश भारत पिछले एक वर्षों से भयानक बदलाव की ओर अग्रसर है, इसके अपने ही पूत इन्हें झुलसाने में लगे है. जिस नौजवान से देश को सबसे ज्यादा उम्मीद होती है, वही नौजवान पथभ्रष्ट होकर देश को सर्वनाश करने की चाहत दिल में बसाये कुकर्मों की झड़ी लगा रहे हैं. जो देश पहले अपने नागरिकों की राष्ट्रीयता व देशभक्ति की भावना पर गुमान करता था, वही आज हरेक क्षण अपने अपनों की दगाबाजी से बिलखने पर मजबूर हो गया है. जाहिर है कि भारतीय परिदृश्य इन दिनों उथल पुथल के दौर से गुजर रही है, ख़ासकर भारतीय विश्वविध्यालयों में जैसे माहौल बन रहे हैं, वो किसी भी नज़रिए से भारत की एकता व अस्मिता के लिए मुनासिब नहीं है. ऐसा लगने लगा है मानो स्वामी विवेकानंद ने जिन बाजुओं पर भरोसा किया था, वे बाजुएँ देश के प्रति अपने दायित्वों व मर्यादाओं को भूल अनजान राहों में बढ़े जा रहे हैं. देशभर में अजीब सी बयार बह निकली है, जहाँ अधिकांश भारतीय बिना गहन जांच-समझ की बहस के दरिया में डूबकी लगा रहा है.

आईये, बीते कुछ महीनों में समूचे भारतवर्ष में सुर्ख़ियों बटोरने वाली कुछ बहुचर्चित मुद्दों पर गौर फरमाते हैं .
पहला, जेएनयू मामला || हमारे देश की ह्रदय माने जाने वाली नगर दिल्ली के विख्यात जवाहर लाल नेहरु विश्वविध्यालय में हुए वाकये ने हवा के रुख को मोड़ने की चेष्टा की. जहाँ भारतीय संसद को दहलाने के मास्टर माइंड अफजल गुरु के फांसी के संवैधानिक रवैयों के विरोध में जेएनयू परिसर में छात्रसंघ द्वारा आवाज़ उठाई गयी. यहाँ तक तो सब ठीक था, किसी भी लोकतांत्रिक गणराज्य में हर किसी को अवाजिब रवैयों के प्रति आवाज़ बुलंद करने का अधिकार प्राप्त है, पर हदें तो तब लांघ दी गयी, जब देशविरोधी उग्र नारों का उन्माद किया जाने लगा. देश को सर्वनाश करने की बातें उठने लगी. इस अति संवेदनशील मामले के प्रति हमारे देश की सत्ता रणबांकुरों का नजरिया उनके स्वार्थ से परे देश पर पड़ने वाले कुप्रभाव को तार पाने में नाकाम रहा. यह बेहद शर्मनाक वाक्या था, जिसने भारत के आन बान व शान को लांछित किया.

इसे बीते कुछ ही महीने हुए थे एक और बेतुके मामले ने भारत के राजनीतिक गलियारों में ख़ासा बावेला मचाया, मुद्दा था “ भारत माता की जय बोलने व न बोलने की ”, कितना हास्यास्पद लगता है, इस मुद्दे पर देश की प्रमुख पार्टियों के मध्य की लड़ाई के बारे में सोचकर . देश आजादी के पश्चात् से ही विकास की आस लिए पल दर पल अनेक समस्याओं से जूझ रहा है. तमाम बड़े बड़े मुश्किलात भारतियों की सहनशक्ति को लगातार चुनौती दे रहे हैं, और हमारे नेतागण बेतुके मामलों में उलझकर देश को विकास तक तक जाने वाले रास्तों से दूर कहीं और भटका रहे हैं. भारत जैसे राष्ट्र के विकास में बड़े अवरोधक ये तमाम चीजें यहीं तक थम जातीं तो बेहतर होता, पर ऐसा नहीं हुआ. अबकी बार भारत के प्रतिष्ठित संस्थान एनआईटी कश्मीर में ज़ोरदार हंगामें ने तूल पकड़ लिया , वहां भारतीय टीम की विश्व कप में हार के पश्चात् जश्न मनाया गया, कश्मीर को आज़ाद करने की आवाजें उठी, आतंकी संगठन आईएसआई के झंडे लहराए गये, कुछ गुटों में झडपें भी हुई, मामला इस हद तक बढ़ गया कि पुलिस को हस्तछेप करना पड़ा. हमारा देश भारत अब कई वर्षों के कुशासन से मुक्त होकर विकास की नयी नयी उच्चाईयों को छूना चाहता है, पर तमाम बेतुके मुद्दे विकास के दर को धीमी करने में तूली हुई है. समग्र भारतवर्ष के नागरिकों को अपने अन्दर देश के प्रति भावनाएं जगाकर साझा प्रयास करनी होंगी, तब जाकर भारत विश्व के सामने अपनी मिसाल स्थापित कर पायेगा.

आदित्य शर्मा
adityasharma.dmk@gmail.com

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