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परीक्षा परिणामों के निकलने का दौर शुरू हो चूका है, साथ ही साथ एक अनचाहा सिलसिला अपने परवान पर चढ़ने को है, यह सिलसिला है ज़िन्दगी, करियर और मौत के बीच चुनाव का, यह सिलसिला है, उन लाखों छात्रों के तनाव के आगोश में जाने का, जो परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए. हर साल यह दौर आता है, और साथ ले जाता है कई कलियों को जिसे खिलना व महकना बाकी था, छोड़ जाता डरावने आंकड़े जिसका स्मरण मात्र लोगों के अवचेतन मन व ह्रदय को झकझोर दे. ज़िन्दगी के इस नाज़ुक अवधि से घबराकर मौत का दामन थामने वालों में 50 से 75 फ़ीसदी युवा होते हैं, जिनकी उम्र 14 से 29 के बीच की होती है. यह राष्ट्र के लिए कतई भी अच्छे संकेत देने वाले नहीं हैं. जिन्हें आसमान को मापना होता व तारों की भांति जगमगाना होता है, वो प्रतिकूल परस्थितियों से पूरी तरह से हार मानकर जीवन से नाता तोड़ लेते हैं. यहीं, हमारे समाज की सबसे कमजोर पहलू झलकती नज़र आती हैं. साफ है कि आत्महत्या करने के पीछे कई कारण रहती होंगी, पर सबसे प्रमुख है, उन्नति की कोशिश में अत्यधिक तनाव को पाल लेना. किसी दार्शनिक ने बेहद सटीक व ज़रूरी बात कहीं थी, कि ज़िन्दगी का उद्देश्य ज़िन्दगी को जीना होता है, न कि इसे बेहतर करने के प्रयास में समूची ज़िन्दगी गुजार देना.
आदित्य शर्मा , दुमका
adityasharma.dmk@gmail.com
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