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“ उम्मीद है कोई तो छोर होगा
जहाँ जिस्म नहीं, रूह की मुलाक़ात होती होगी
अफसानों के इस भीड़ में कुछ तो शख्स होंगे ही
जो शायद “ मुहब्बत ” में बातें रूह की करते होंगें …..”
ये चंद संवेदनशील पंक्तियाँ वर्तमान समय में इंसानी पुतलों में प्यार व मोहब्बत के बदल चुके मुकाम को स्पष्ट करने के लिए काफी हैं. रूह के मिलन की चाहत लिए लोग किन-किन मुस्किलातों से गुजर जाते थे, और आज जिस कदर समूची दुनिया इश्क के प्रसार व प्रभाव को महज जिस्मों की प्यास तक सिमटा चुकी हैं, वह बेहद दुखद व चिंतनीय है. अतीत में तमाम ऐसी अमर प्रेमकथाएं पनपीं, जिसने लोगों को मोहब्बत की ताक़त और सहनशीलता के पैमानों का परिचय देकर इश्क की मजबूत परिभाषाएं गढ़ी. वक़्त का पहिया घुमा, कुछ हम बदले कुछ ये ज़माना बदला, अब तो… मोहब्बत को खेल समझा जाता है, और जिस्मों को खिलौना.
लोगों की मानसिकता में आये इस भयानक बदलाव से अब ” प्यार” खतरे में है साथ ही साथ अपने अस्तित्व के विनाश के मुआने पर खड़ी है, रिश्तों की नाज़ुक बंधनें, जो मुहब्बत के बल पर स्थापित थीं. दिन-ब-दिन इश्क के पवित्र एहसास को शर्मसार किया जाता रहा है. लोग जिस्मों के भूख से परे रूह के मेल को समझ पाने में नाकाम हैं. परिणामस्वरुप बलात्कार, जिस्मफरोशी व कई जघन्य अपराध हमारे समाज को अपने आगोश में लिए, पल दर पल खौफ का साया फैलाती जा रही है. कई दफ़ा तो लोग प्यार की बदली परिभाषा में तो सारी हदों को लांघकर मानवीय गुणों के विपरीत करतूतों को अंजाम दे बैठते हैं. क्या इश्क का मतलब सिर्फ हासिल करना होता है या कुछ और ?.. बहरहाल वर्तमान परिदृश्य के करतूतों पर गौर करें तो यह कतई नहीं लगता कि आज के युवा मोहब्बत के सही अर्थ से वाकिफ हैं. एकतरफा मोहब्बत या यूँ कहें कि जिस्म की चाहत में, वो सारी सीमाओं का अक्सर अतिक्रमण करते हैं. कभी प्यार में निराश सिरफिरे अपने सपनों की मासुका पर तेज़ाब से हमला करते हैं तो कभी तो उसकी जान तक लेने की कोशिश करते हैं. क्या सचमुच हमारा समाज मोहब्बत के उसूलों को समझ रहा है या ……?????
आदित्य शर्मा
adityasharma.dmk@gmail.com
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