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हर दिन सुलगती धरती, जख्मों से जुड़ता रिश्ता और अपनी माटी से ही उठता विश्वास , यही है कश्मीर की दास्तां ! ये कहानी बेहद पुरानी है , ये सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है । वक़्त बेवक़्त की कड़वाहट इस फ़िज़ा में इतनी तल्खी ला देती है कि मानवों का दानव रूप हमारे नज़रों के सामने होता है ।
आंकड़े गवाही देते हैं कि कश्मीर की हसीन वादियां वर्षों से रक्तरंजित रहीं है । पचास के दशक में हुए कश्मीर मुद्दे के अंतराष्ट्रीकरण और दो पड़ोसी मुल्क के मध्य व्याप्त राजनीतिक खींचातानी ने कश्मीरवासियों को सदैव पीड़ा ही प्रदान की है ।केवल वर्ष 2013 से 2016 के दरम्यान , 900 से अधिक घटित आतंकी वारदातों में , 200 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी शहीद हुए, जबकि 459 से अधिक स्थानीय निवासी घायल हुए । ताज्जुब की बात यह है कि जन्नत की तस्वीर पेश करने वाली कश्मीर में आम जनजीवन जहन्नुम सरीखे मालूम पड़ती है । पिछले साल मुठभेड़ में आतंकी बुरहान वाणी के मौत के पश्चात से ही घाटी के हालात बिगड़े हुए हैं । रह-रहकर पाकिस्तान नापाक करतूतों को अंजाम दे रहा है । जबकि , जवाबी कार्यवाही के दौरान हमारे अपने ही खलल डाल रहे हैं । दरअसल , रोजगारविहीन कश्मीरी युवाओं में पैसों का लालच व धार्मिक रूप से गुमराह किये जाने के कारण भटकाव की स्थिति उत्पन्न हो गयी है , जो देश की सुरक्षा के लिए मुनासिब नहीं है ।
बेशक सरकार ने आतंकवाद से निपटने के लिए कई सख्त कदम उठाये हैं ।मसलन, केंद्रीय सशक्त सुरक्षा बलों की संख्यां बढ़ाई गयी है, प्रभावी सीमा प्रबंधन पर जोर दिया गया है और कई दफा हमारे प्रधानमंत्री कश्मीर का दौर तक कर चुके हैं ।बावजूद इसके स्थिति में उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं हुए हैं । आशा तो यही है कि कश्मीर में अमन-चैन लौट आये ।
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